Friday, 20 July 2012

राष्ट्रपति चुनाव का राजनीतिक गणित
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भारत में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल का कार्यकाल 25 जुलाई 2012 को समाप्त हो रहा है. इसी महीने देश के 13वें 

राष्ट्रपति को चुना जाएगा.
निर्वाचन अप्रत्यक्ष मतदान से होता है. जनता की जगह जनता के चुने हुए प्रतिनिधि राष्ट्रपति को चुनते हैं.
राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचन मंडल या इलेक्टोरल कॉलेज करता है.इसमें संसद के दोनों सदनों तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं.
दो केंद्रशासित प्रदेशों, दिल्ली और पुद्दुचेरी, के विधायक भी चुनाव में हिस्सा लेते हैं जिनकी अपनी विधानसभाएँ हैं.
चुनाव जिस विधि से होता है उसका नाम है – आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर एकल हस्तांतरणीय मत द्वारा .
राष्ट्रपति चुनाव की वर्तमान व्यवस्था 1974 से चल रही है और ये 2026 तक लागू रहेगी.
इसमें 1971 की जनसंख्या को आधार माना गया है.
वोट का मूल्य
राष्ट्रपति चुनाव में अपनाई जानेवाली आनुपातिक प्रतनिधित्व प्रणाली की विधि के हिसाब से प्रत्येक वोट का अपना मूल्य होता है.
सांसदों के वोट का मूल्य निश्चित है मगर विधायकों के वोट का मूल्य अलग-अलग राज्यों की जनसंख्या पर निर्भर करता है.
निर्वाचन मंडल

सदस्यएक वोट का मूल्यसदस्य संख्यावोट(लगभग 11 लाख)
निर्वाचित सांसद708776लगभग साढ़े पाँच लाख
निर्वाचित विधायकराज्य की जनसंख्या पर निर्भर4120लगभग साढ़े पाँच लाख

जैसे देश में सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश के एक विधायक के वोट का मूल्य 208 है तो सबसे कम जनसंख्या वाले प्रदेश सिक्किम के वोट का मूल्य मात्र सात.
प्रत्येक सांसद के वोट का मूल्य 708 है.
भारत में अभी 776 सांसद हैं. 543 लोकसभा सांसद और 233 राज्य सभा सांसद.
776 सांसदों के वोट का कुल मूल्य है – 5,49,408 (लगभग साढ़े पाँच लाख)
भारत में विधायकों की संख्या है 4120.
इन सभी विधायकों का सामूहिक वोट है 5,49,474 (लगभग साढ़े पाँच लाख)
इसप्रकार राष्ट्रपति चुनाव में कुल वोट हैं – 10,98,882 (लगभग 11 लाख)
समीकरण
यूपीए की स्थिति
पार्टीसांसदविधायकवोट(लगभग)
कांग्रेस27711773,30,000
तृणमूल2819948,000
डीएमके252522,000
एनसीपी169424,000
आरजेडी6279,000
एनसी5285,500
मुस्लिम लीग2204,500
जेवीएम2113,500
एआईएमआईएम172,000
बीपीएफ2123,000
केरल कांग्रेस192,000
आरएलडी696,000
एलजेपी111100
कुल37216194,60,000

राष्ट्रपति चुनाव में जीत के लिए चाहिए – 5,49,442 वोट (लगभग साढ़े पाँच लाख वोट)
फिलहाल यूपीए के पास उसके सभी सांसदों और सभी विधायकों के वोटों को मिलाकर कुल वोट हैं – 4,60,191
एनडीए के पास सभी सांसदों और विधायकों को मिलाकर कुल वोट हैं – 3,04,785
ऐसी पार्टियाँ, जो ना तो यूपीए में हैं, ना ही एनडीए में, उनके वोट हैं – 2,60,000 से ज्यादा.
कुछ अन्य छोटी पार्टियों के पास भी 70,000 से ज़्यादा वोट हैं.
स्पष्ट है कि ना तो यूपीए और ना ही एनडीए अपने दम पर राष्ट्रपति चुन सकते हैं.
दोनों ही को दूसरी पार्टियों का सहयोग चाहिए.
इसी कारण इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में बड़ी जनसंख्या वाले राज्यों के क्षेत्रीय नेताओं मुलायम सिंह यादव, शरद पवार, ममता बनर्जी, नीतिश कुमार जैसे नेताओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है.
क्षेत्रीय दल
चुनाव में सबसे अधिक वोट वाला प्रदेश है उत्तर प्रदेश. वहाँ के विधायक के वोट का मूल्य 208 है.
यूपी की दोनों मुख्य पार्टियाँ, एसपी और बीएसपी, ना तो यूपीए के साथ हैं ना एनडीए के.
दोनों के पास मिलाकर लगभग 1,15,000 वोट हैं.
एनडीए की स्थिति
पार्टीसांसदविधायकवोट (लगभग)
बीजेपी1638252,25,000
जेडी (यू)3012142,000
एसएडी75711,500
शिवसेना154518,500
जेएमएम2184,500
एजीपी3103,000
एचजेसी111000
कुल2211,0773,05,000

वहाँ 27 सांसदों और 230 विधायकों वाली सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के पास लगभग 67000 वोट हैं.
मायावती की बीएसपी के पास लगभग 46,000 वोट हैं.
पश्चिम बंगाल में एक विधायक के वोट का मूल्य 151 है.
वहाँ 25 सांसदों और 199 विधायकों वाले सत्ताधारी तृणमूल के पास लगभग 46,000 वोट हैं.
इसी तरह महाराष्ट्र में शरद पवार की पार्टी एनसीपी के पास लगभग 23,000 वोट हैं.
बिहार में नीतिश कुमार की पार्टी जेडी(यू) के पास लगभग 41,000 वोट हैं.
ऐसी स्थिति में कांग्रेस के लिए सबसे बेहतर उपाय यही है कि वो आपसी सहमति बनाने की कोशिश करे.
अन्य दल
पार्टीसांसदविधायकवोट (लगभग)
एसपी3023069,000
बीएसपी369143,000
एआईएडीएमके1415837,000
लेफ़्ट3919652,000
बीजेडी2010330,000
टीडीपी118620,500
जेडी (एस)3306,000
पीडीपी0221,500
टीआरएस2123,000
कुल1559282,62,000
अन्य छोटे दल71,500

कांग्रेस और बीजेपी के संबंध बहुत मधुर नहीं हैं, इसलिए इस चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियाँ अपनी अहमियत का लाभ उठाने का प्रयास कर सकती हैं.
इसलिए कांग्रेस चाहेगी कि यूपीए एकजुट रहे और ममता बनर्जी तथा शरद यादव जैसे क्षेत्रीय नेता उसकी पसंद का साथ दें.
वहीं समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का झुकाव भी यूपीए की तरफ है. ऐसे में यूपीए के लिए स्थितियाँ जटिल अवश्य हैं मगर कठिन नहीं.
मगर संख्याबल और मौजूदा राजनीतिक समीकरणों के आधार पर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को लिए राह आसान नहीं.
उसके लिए अपनी पसंद के राष्ट्रपति को चुनवाने लायक बहुमत जुटाना अधिक कठिन है.
बीजेपी को इसके लिए अपने पूर्व सहयोगियों - बीएसपी, टीएमसी, एआईएडीएमके, बीजेडी, टीडीपी और जेडी (एस) - से सहयोग माँगना पड़ सकता है.
और बात इतने से भी नहीं बनेगी. उन्हें तब भी समाजवादी पार्टी का सहयोग चाहिए होगा.
ज़ाहिर है बीजेपी के लिए अपने दम पर किसी को राष्ट्रपति बनवा सकना बहुत कठिन है.
गठबंधन की पार्टियाँ
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(यूपीए)कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (डीएमके), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), नेशनल कॉन्फ़्रेंस (एनसी), मुस्लिम लीग, झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम), ऑल इंडिया मुस्लिमे इत्तेहादुल मुसलमीन, (एआईएमआईएम), बोडोलैंड पीपुल्स फ़्रंट (बीपीएफ़), केरल कांग्रेस, राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी), लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी)
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(एनडीए)भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), जनता दल युनाईटेड (जेडी यू), शिरोमणि अकाली दल (एसएडी), शिव सेना, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), असम गण परिषद (एजीपी), हरियाणा जनहित कांग्रेस (एचजेसी)

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