सामाजिक जीवन में चलने वाली घटनाओं, आस
पास के परिवेश में हो रहे परिवर्तनों आदि के बारे में लोग जानना चाहते हैं, और जैसी की
मानव प्रवृत्ति है.. कि जो लोग
बातों को जानते हैं वे उसे दूसरो को बताना चाहते हैं..जिज्ञासा की इसी वृत्ति में पत्रकारिता के उद्भव
एवं विकास की कथा छिपी है...पत्रकारिता
जहाँ लोगों को उनके परिवेश से परिचित कराती है, वहीं वह
उनके होने और जीने में सहायक है...
वास्तव में पत्रकारिता भी साहित्य की
भाँति समाज में चलने वाली गतिविधियों एवं हलचलों का दर्पण है... वह हमारे परिवेश
में घट रही प्रत्येक सूचना को हम तक पहुंचाती है... देश-दुनिया में हो रहे नए
प्रयोगों, कार्यों को हमें बताती है... इसी कारण
विद्वानों ने पत्रकारिता को शीघ्रता में लिखा गया इतिहास भी कहा है... वस्तुतः आज
की पत्रकारिता सूचनाओं और समाचारों का संकलन मात्र न होकर मानव जीवन के व्यापक
परिदृश्य को अपने आप में समाहित किए हुए है...
यह शाश्वत नैतिक मूल्यों, सांस्कृतिक
मूल्यों को समसामयिक घटनाचक्र की कसौटी पर कसने का साधन बन गई है... वास्तव में
पत्रकारिता जन-भावना की अभिव्यक्ति, सद्भावों की अनुभूति और नैतिकता की
पीठिका है... संस्कृति, सभ्यता औस स्वतंत्रता की वाणी होने के
साथ ही यह जीवन अभूतपूर्व क्रांति की अग्रदूतिका है.... ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-संस्कृति, आशा-निराशा, संघर्ष-क्रांति, जय-पराजय, उत्थान-पतन
आदि जीवन की विविध भावभूमियों की मनोहारी एवं यथार्थ छवि हम युगीन पत्रकारिता के
दर्पण में कर सकते हैं...
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के
पत्रकारिता विभाग के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो. अंजन कुमार बनर्जी के शब्दों
में “पत्रकारिता पूरे विश्व की ऐसी देन है
जो सबमें दूर दृष्टि प्रदान करती है ।” वास्तव में प्रतिक्षण परिवर्तनशील जगत
का दर्शन पत्रकारिता के द्वारा ही संभव है ।
पत्रकारिता की आवश्यकता एवं उद्भव पर
गौर करें तो कहा जा सकता है कि जिस प्रकार ज्ञान-प्राप्ति की उत्कण्ठा, चिंतन
एवं अभिव्यक्ति की आकांक्षा ने भाषा को जन्म दिया ।ठीक उसी प्रकार समाज में एक
दूसरे का कुशल-क्षेम जानने की प्रबल इच्छा-शक्ति ने पत्रों के प्रकाशन को बढ़ावा
दिया । पहले ज्ञान एवं सूचना की जो थाती मुट्ठी भर लोगों के पास कैद थी, वह आज
पत्रकारिता के माध्यम से जन-जन तक पहुंच रही है । इस प्रकार पत्रकारिता हमारे
समाज-जीवन में आज एक अनिवार्य अंग के रूप में स्वीकार्य है । उसकी प्रामाणिकता एवं
विश्वसनीयता किसी अन्य व्यवसाय से ज्यादा है । शायद इसीलिए इस कार्य को कठिनतम
कार्य माना गया । इस कार्य की चुनौती का अहसास प्रख्यात शायर अकबर इलाहाबादी को था, तभी वे
लिखते हैं –
“खींचो न
कमानों को, न तलवार निकालो
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो”
पत्रकारिता का अर्थ –
सच कहें तो पत्रकारिता समाज को मार्ग
दिखाने, सूचना देने एवं जागरूक बनाने का माध्यम
है । ऐसे में उसकी जिम्मेदारी एवं जवाबदेही बढ़ जाती है । यह सही अर्थों में एक
चुनौती भरा काम है ।
प्रख्यात लेखक-पत्रका डॉ. अर्जुन
तिवारी ने इनसाइक्लोपीडिया आफ ब्रिटेनिका के आधार पर इसकी व्याख्या इस प्रकार की
है – “पत्रकारिता के लिए‘जर्नलिज्म’ शब्द
व्यवहार में आता है । जो ‘जर्नल’ से
निकला है । जिसका शाब्दिक अर्थ है – ‘दैनिक’। दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलापों, सरकारी
बैठकों का विवरण जर्नल में रहता था । 17वीं एवं 18 वीं शताब्दी में पीरियाडिकल के स्थान
पर लैटिन शब्द ‘डियूनरल’ और ‘जर्नल’ शब्दों
का प्रयोग आरंभ हुआ । 20वीं सदी में गम्भीर समालोचना एवं
विद्वतापूर्ण प्रकाशन को इसके अन्तर्गत रका गया । इस प्रकार समाचारों का
संकलन-प्रसारण, विज्ञापन की कला एवं पत्र का
व्यावसायिक संगठन पत्रकारिता है । समसामयिक गतिविधियों के संचार से सम्बद्ध सभी
साधन चाहे वह रेडियो हो या टेलीविज़न, इसी के अन्तर्गत समाहित हैं ।”
एक अन्य संदर्भ के अनुसार ‘जर्नलिज्म’ शब्द
फ्रैंच भाषा के शब्द ‘जर्नी’ से उपजा
है । जिसका तात्पर्य है ‘प्रतिदिन के कार्यों अथवा घटनाओं का
विवरण प्रस्तुत करना ।’ पत्रकारिता मोटे तौर पर प्रतिदिन की
घटनाओं का यथातथ्य विवरण प्रस्तुत करती है। पत्रकारिता वस्तुतः समाचारों के संकलन, चयन,विश्लेषण तथा सम्प्रेषण की प्रक्रिया
है । पत्रकारिता अभिव्यक्ति की एक मनोरम कला है । इसका काम जनता एवं सत्ता के बीच
एक संवाद-सेतु बनाना भी है । इन अर्थों में पत्रकारिता के फलित एव प्रभाव बहुत
व्यापक है ।
पत्रकारिता का मूल उद्देश्य है सूचना
देना, शिक्षित करना तथा मनोरंजन करना । इन
तीनों उद्देश्यों में पत्रकारिता का सार-तत्व समाहित है । अपनी बहुमुखी
प्रवृत्तियों के कारण पत्रकारिता व्यक्ति और समाज के जीवन को गहराई से प्रभावित
करती है । पत्रकारिता देश की जनता की भावनाओं एवं चित्तवृत्तियों से साक्षात्कार
करती है । सत्य का शोध एवं अन्वेषण पत्रकारिता की पहली शर्त है । इसके सही अर्थ को
समझने का प्रयास करें तो अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध दर्ज करना इसकी महत्वपूर्ण मांग
है ।
असहायों को सम्बल, पीड़ितों
को सुख, अज्ञानियों को ज्ञान एवं मदोन्मत्त
शासक को सद्बुद्धि देने वाली पत्रकारिता है, जो
समाज-सेवा और विश्व बन्धुत्व की स्थापना में सक्षम है । इसीलिए जेम्स मैकडोनल्ड ने
इसे एक वरेण्य जीवन-दर्शन के रूप में स्वीकारा है –
“पत्रकारिता
को मैं रणभूमि से भी ज्यादा बड़ी चीज समझता हूँ । यह कोई पेशा नहीं वरन पेशे से
ऊँची कोई चीज है । यह एक जीवन है, जिसे मैंने अपने को स्वेच्छापूर्वक
समर्पित किया ।”
पत्रकारिता की प्रकृति
सूचना, शिक्षा
एवं मनोरंजन प्रदान करने के तीन उद्देश्यों में सम्पूर्ण पत्रकारिता का सार तत्व
निहित है । पत्रकारिता व्यक्ति एवं समाज के बीच सतत संवाद का माध्यम है । अपनी
बहुमुखी प्रवृत्तियों के चलते पत्रकारिता व्यक्ति एवं समाज को गहराई तक प्रभावित
करती है । सत्य के शोध एवं अन्वेषण में पत्रकारिता एक सुखी, सम्पन्न
एवं आत्मीय समाज बनाने की प्रेरणा से भरी-पूरी है । पत्रकारिता का मूल उद्देश्य ही
अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध दर्ज करना है । सच्ची पत्रकारिता की प्रकृति व्यवस्था
विरोधी होती है । वह साहित्य की भाँति लोक-मंगल एवं जनहित के लिए काम करती है। वह
पाठकों में वैचारिक उत्तेजना जगाने का काम करती है । उन्हें रिक्त नहीं चोड़ती ।
पीड़ितों, वंचितों के दुख-दर्दों में आगे बढ़कर
उनका सहायक बनना पत्रकारिता की प्रकृति है । जनकल्याण एवं विश्वबंधुत्व के भाव
उसके मूल में हैं । गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है –
“कीरति
भनति भूलि भलि सोई, सुरसरि सम सबकर हित होई ”
उपरोक्त कथन पत्रकारिता की मूल भावना
को स्पष्ट करता है । भारतीय संदर्भों में पत्रकारिता लोकमंगल की भावना से
अनुप्राणित है । वह समाज से लेना नहीं वरन उसे देना चाहती है । उसकी प्रकृति एक
समाज सुधारक एवं सहयोगी की है । वह अन्याय, दमन से
त्रस्त जनता को राहत देती है, जीने का हौसला देती है । सत्य की लड़ाई
को धारदार बनाती है । बदलाव के लिए लड़ रहे लोगों की प्रेरणा बनती है । पत्रकारिता
की इस प्रकृति को उसके तीन उद्देश्यों में समझा जा सकता है ।
1. सूचना देना
पत्रकारिता दुनिया-जहान में घट रही
घटनाओं, बदलावों एवं हलचलों से लोगों को अवगत
कराती है । इसके माध्यम से जनता को नित हो रहे परिवर्तनों की जानकारी मिलती रहती
है । समाज के प्रत्येक वर्ग की रुचि के के लोगों के समाचार अखबार विविध पृष्ठों पर
बिखरे होते हैं, लोग उनसे अपनी मनोनुकूल सूचनाएं
प्राप्त करते हैं । इसके माध्यम से जनता को सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों की
जानकारी भी मिलती रहती है । एक प्रकार से इससे पत्रकारिता जनहितों की संरक्षिका के
रूप में सामने आई है ।
2. शिक्षित करना
सूचना के अलावा पत्रकारिता ‘लोक
गुरू’ की भी भूमिका निभाती है । वह लोगों में
तमाम सवालों पर जागरुकता लाने एवं जनमत बनाने का काम भी करती है । पत्रकारिता आम
लोगों को उनके परिवेश के प्रति जागरुक बनाती है और उनकी विचार करने की शक्ति का
पोषण करती है । पत्रकारों द्वारा तमाम माध्यमों से पहुंचाई गई बात का जनता पर सीधा
असर पड़ता है । इससे पाठक यादर्शक अपनी मनोभूमि तैयार करता है । सम्पादकीय, लेखों, पाठकों
के पत्र, परिचर्चाओं,साक्षात्कारों इत्यादि के प्रकाशन के
माध्यम से जनता को सामयिक एवं महत्पूर्ण विषयों पर अखबार तथा लोगों की राय से
रुपरू कराया जाता है । वैचारिक चेतना में उद्वेलन का काम भी पत्रकारिता बेहतर
तरीके से करती नजर आती है । इस प्रकारपत्रकारिता जन शिक्षण का एक साधन है ।
3 मनोरंजन करना
समाचार पत्र, रेडियो एवं टीवी ज्ञान एवं सूचनाओं के
अलावा मनोरंजन का भी विचार करते हैं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर आ रही विषय वस्तु तो
प्रायः मनोरंजन प्रधान एवं रोचक होती है । पत्र पत्रिकाएं भी पाठकों की मांग का
विचार कर तमाम मनोरंजक एवं रोचक सामग्री का प्रकाशन करती हैं । मनोरंजक सामग्री
स्वाभाविक तौर पर पाठकों को आकृष्ट करती है । इससे उक्त समाचार पत्र पत्रिका की
पठनीयता प्रभावित होती है । मनोरंजन के माध्यम से कई पत्रकार शिक्षा का संदेश भी देते हैं । अलग-अलग पाठक वर्ग काविचार कर भिन्न-भिन्न प्रकार की सामग्री पृष्टों
पर दी जाती है । ताकि सभी आयु वर्ग के पाठकों को अखबार अपना लग सके । फीचर लेखों, कार्टून, व्यंग्य
चित्रों,सिनेमा, बाल , पर्यावरण, वन्य
पशु, रोचक-रोमांचक जानकारियों एवं जनरुचि से
जुड़े विषयों पर पाठकों की रुचि का विचार कर सामग्री दी जाती है। वस्तुतः
पत्रकारिता समाज का दर्पण है। उसमें समाज के प्रत्येक क्षेत्र में चलने वाली
गतिविधि का सजीव चित्र उपस्थित होता है । वह घटना, घटना के
कारणों एवं उसके भविष्य पर प्रकाश डालती है । वह बताती है कि समाज में परिवर्तन के कारण क्या हैं और उसके फलित क्या होंगे ? इस प्रकार पत्रकारिता का फलक बहुत
व्यापाक होता है...
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